सोमवार, 13 मई 2013

भारत में स्त्री मुक्ति और स्त्री स्वातंत्र्य की चर्चा अक्सर की जाती रही है | लेकिन पुरूष स्वातंत्र्य और पुरूष शोषण की बात करने में अक्सर कंजूसी बरती जाती है | इसका प्रमाण धारा ३७६ के दुरूपयोग से मिलता है | हमने इसे अपनी आँखों से देखा है | वाकया गाँव के प्रथम व्यक्ति से सम्बंधित है| पूरा गाँव उस व्यक्ति के समर्थन में अभी भी है लेकिन एक औरत ने उन पर आरोप लगाया है कि-अमुक व्यक्ति विगत तीन वर्षों से हमारे साथ सम्बन्ध बना रहा है | बात यहीं तक रहती तो इसे सत्य मानने में कोताही नहीं लेकिन उसने थाना-मजिस्ट्रेट के सामने अलग-अलग बयान दिया है | यहाँ तक कि-उसने ७० हजार रूपये और एक चेन की भी मांग अप्रत्यक्ष रूप से लगाया है |उत्तर प्रदेश पुलिस की बातें निराली है, बिना जाँच लिए इस घटना को सत्य मानकर ३७६ का आरोप तय कर दी | जबकि उस व्यक्ति से दूर-दूर तक उससे कोई सम्बन्ध नहीं | यहाँ तक कि-यह भी जानकारी मिली है कि-यहाँ जेल में इस मुकदमे में कुल ७०० लोग सजा भुगत रहें हैं, जिसमे नब्बे फीसदी पर झूठ-मूठ का आरोप है | क्या बच्चा, क्या जवान, क्या बूढा हर व्यक्ति इस समस्या से जूझ रहा है | कहावत सटीक है-एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है लेकिन जब तालाब का पानी सूख गया हो तो वह क्या कर सकती है | ऐसे ही हमारे समाज के रक्षक ही भक्षक बनकर पीड़ित को और पीड़ा पहुंचाते है तथा अपराधी स्वतन्त्र विचरण करते हैं | नारी की गरिमा और उसकी अस्मिता की पहचान उसकी आबरू से होती है लेकिन क्या यह घटना नये विमर्श की मांग नहीं करती |

महामारी


अकाल के बाद यह
रोग बनकर आती है,
सताती है, जलाती है
रूलाती है, सुलाती है |
दिन को भी रात और
रात को भी दिन बनाती है |
कार्य दिवस में बड़े बाबू को
चमत्कार दिखलाती है |
हाय ! यही महामारी उसे
स्वप्न में भी उठाती है |
गिरता हुआ व्यक्ति भी
ओहदा का ध्यान नहीं रखता
अपना ही पेट भरता है
भरता चला जाता है |
दूसरों का निवाला निगलते-निगलते
राक्षस ही बन जाता है |
यह वही महामारी है जो
सभ्यता को कहीं का नहीं छोडती
शिक्षा में लग जाने से
इंजीनीयर-डाक्टर के फेर में
बेकारी को ही बुलाती |
ओह.....! यही महामारी उसे
असमय बेरोजगार ही बनाती |
गावो-शहरों के बीच
के भेद को भी निताती है
जाति-पात से ऊपर उठाकर
इंसान कहलाने पर भी
विवश उसे कराती है |

०२/०४/२०१३

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