रविवार, 14 जुलाई 2013

शोर

शोर


समुद्र की लहरें
किनारे तक हिलोरें
लेती हुई शोर करती |
भयभीत जन सूनामी का
अहसास करते-करते शांत
सहमकर दरबे में सो जातें |

मछुआरे की नाव
बीच भंवर में पहुँचकर भी
टकराकर धरती के प्लेटों के
लड़ने का आभास कराती...|
चकोह के मायाजाल में फँस
शोर के गर्भ में गुम हो जाती |

चमकते ललाट की आभा
ॐ मन्त्र के जाप से चिंतन मन
विवेकानंद रॉक से निकली ध्वनि
सराबोर करती उस अंतर्मन को
शुद्ध करते-करते नव सन्देश देती
जीवन-यौवन को पास बुलाती ||

शिक्षा का मंदिर
कलरव करते नन्हें-मुन्हें बच्चे
ध्वनि संकेतों से निर्मित लिपि
रोज-रोज नए शब्दों का निर्माण
पदबंध में जुडकर डमरू को सुन
गदगद मन झंकृत ही होता |

प्रकृति के मनोरम दृश्य
पके आम के फलों से लदे पेड़
हवा से पत्तों की खनकती आवाज
सुनते आकाश में उडती चिड़ियाँ ||

क्रमशः

डॉ. मनजीत सिंह

जुलाई 14, 2013, रविवार

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