हाय रे गरीबी
तूने कहीं का न छोड़ी ..!
योजना आयोग की आँखमिचौली के खेल में गरीबों की गरीबी भी शरमा जाय | काश उनमें से किसी सदस्य और सरकार के कारिंदों को एक दिन के लिए 27 और 33 रूपये में पाँच सितारा होटल से विरत जीवन गुजारने का समय मिल जाता | यदि इतनी तीव्र गति से गरीबों (सात साल में 37.5 से 21.9-2004-05 से 20011-12) को देश से मुक्त करने में सफलता पाए गयी है(17 करोड) तो शायद जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है उससे तीव्रतर गति से गरीबों को रोटी, कपडा और मकान से परिपूर्ण करने में देर नहीं | बहरहाल यह गरीबों के साथ मजाक है...क्योंकि २०११ में 26 रूपये गाँव में और 32 रूपये शहर में निर्धारित आंकड़ों में एक रूपया जोड़कर नया आंकड़ा प्रस्तुत कर दिया गया | गेहूँ-चावल-चीनी-नमक-मिर्च-धनियजब से मेरा अर्थ से पाला पड़ा है तभी से आँकडे चौसर के पासे की तरह काम करते हैं...चाहें बजट हो, आर्थिक सर्वेक्षण हो या अब योजना आयोग हो | इस खेल में न जाने कई द्रौपदियों(क्योंकि महँगाई ऐसे बढ़ी है जैसे द्रौपदी की साड़ी ) को दाँव पर लगाया गया, न जाने कितने शकुनि मामाओं ने अपनी चाल खेली...इसका अंदाजा लगाकर संतोष भर किया जा सकता है..संतोषं परम सुखम | लेकिन क्या कभी हमारे सरकारी नुमाइंदे या स्वयं सरकार के संरक्षक कृष्ण का भेष धारण करके उनकी इज्जत बचाने का प्रयास कर रहें ? अब तो यही कह सकते हैं...ढाक के तीन पात हुए इस आँकड़ों से पुनः वही बात याद आ रही है....का बरखा जब कृषि सुखानी ...!! अब खेती भी सुख गयी और दो साल में केवल दो ही बूँ(द1+1) बारिश हुई..देंखे मूसलाधार बारिश कब होती है, जिससे किसानों के साथ ही मजदूरों का परिवार तरबतर होकर नहायेगा....छपाक..छप...छपाक..छप
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