पर्यावरण
गोधूलि बेला में
दरख्त की रूदन
हरे-हरे पत्तों पर
कृत्रिम आँसूओं की धारा
धरती की बनावटी गर्मी को
अनकहे बयाँ करती है..... !
आम, नीम, पीपल,बबूल,ताड़
साल,सागौन,चीड़ औ देवदार
एक साथ वही रोना रोते....?
नदी-घाटी, पहाड़-पठार
अपने ओछेपन से तंग होकर
काल की ग्रास बनती बसुंधरा पर
मुसकाते और चिढ़ाते हुए
आह्वान करते.........!!!
सीमित होकर भी छेड़ो-काटो
फल का स्वाद भी चखा करो..?
डॉ. मनजीत सिंह
5जून2013
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