आह से निकला गान !
बेटी की तेज धड़कन
सुनने के बाद भावविभोर होकर
मन के सागर में गोता लगाता
हैरान-परेशान ग़मों को पीकर
चल निकला ईश्वर के घर-द्वार |
दिल की गहराई को
बार-बार मापने के बाद ही
आह निकली ! पीड़ा के बरक्स
आवाज को सुनने वाले बहुत हैं ।
लेकिन
आँगन के दायरे के भीतर से
असह्य वेदना के इस मर्म को
समझने-समझने वाला शायद कोई
जीवन की अक्षुण्ण बहती नदी के
निर्मल जल की शोभा बढ़ाने में
सहयोग की गुंजाईश से आगे आये |
बीते पल की नुमाइश करके
बह चली एक धारा इस धरा पर
दुःख की छाया अब मद्धिम हो
अधखिले सूरजमुखी संग होकर
यौवन के संगम पर बालू की रेत में
बुढ़ापा का एहसाह तरबतर होकर
एक नयी परिभाषा गढ़ता-जाता ।।
क्रमशः
©डॉ. मनजीत सिंह
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