गुरुवार, 26 मार्च 2020

जनहित

#जनहित_में_जारी


एकांतवास : एक चुनौती


#आज_व्यस्त_रहना_कल_स्वस्थ_रहना  भी सबसे बड़ी चुनौती है । जब हमारी यह स्थिति है (बहरहाल यह कब तक है कह नहीं सकते क्योंकि हमारे यहाँ एकांत मठ बनाने की योजना है) तो आठ गुणे आठ के कमरे में जीवन व्यतीत करने वाले परिवार (मुम्बई जैसे महानगरोंमें)की वर्तमान स्थिति क्या होगी ?#घर ही स्वर्ग है ।

अभी भी लोगों को यह अनुमान नहीं कि स्थिति अत्यंत गंभीर है । मुम्बई की धारावी जैसी बस्ती के बारे में कम ही लोग सोच सकते हैं क्योंकि अभी भी जानकार मानने की भूल कर रहे हैं कि इस वैश्विक आपदा बड़े घरों-बड़े परिवारों को सर्वाधिक प्रभावित है । जबकि यह सरासर गलत है । क्योंकि कोई भी आपदा किसी वर्ग विशेष तक कैसे सीमित हो सकती है ? इसकी न ही कोई जाति है, न ही यह किसी विशेष वर्ग की उपजात है, न ही यह महानगरीय एवं नगरीय जीवन शैली तथा अभिजात्य परंपरा की उपज हो सकती है । यदि दार्शनिक लहजे में कहें तो यह सर्वव्यापी है । क्या राजा ? क्या रंक ? उसके लिए हर घर एक समान है ।

इस प्रकार जैसे भारत गाँवों का देश है वैसे ही धारावी जैसी बस्तियाँ भारतीय संस्कृति की सूरत को बदलती हैं । अतः तथ्य के लिए मुक्त ज्ञान कोष पर भरोसा करें तो उसमें निम्न आँकड़े सहज ही मिल जाएँगे । उसमें स्पष्टतः वर्णित है कि-"धारावी एक झुग्गी बस्ती है। यह पश्चिम माहिम और पूर्व सायन के बीच में है और यह 175 हेक्टेयर, या 0.67 वर्ग मील (1.7 वर्ग किमी) के एक क्षेत्र में है। 1986 में, जनसंख्या 530,225 में अनुमान लगाया गया था, लेकिन आधुनिक धारावी 600.000 से 1 लाख से अधिक लोगों के बीच की आबादी है। धारावी पहले दुनिया की सबसे बड़ी गंदी बस्ती थी, लेकिन २०११ के अनुमान से अब मुंबई में धारावी से बडी चार गंदी बस्तियाँ हैं।"यहाँ की जनसँख्या भले ही अनुमानित है लेकिन इसमें संदेह नहीं कि यहाँ के लोग सुरक्षित नहीं । धारावी जैसी चार बस्तियाँ केवल कागज पर दिख जाएँगी । लेकिन सम्पूर्ण भारत की झुग्गी-झोपड़ियों के आँकड़ों को जुटाया जाय तो इनकी जनसँख्या करोड़ों में है । इसका सबसे बड़ा भाग भारतीय रेल मंत्रालय की परती पड़ी जमीनों और रेल लाईन के साथ-साथ बसे लोगों पर भी सरसरी निगाह दौड़ा सकते हैं । । उनके लिए एकांतवास एक जुमले से बढ़कर कुछ नहीं ।

एकांतवास की सबसे बड़ी समस्या का जिक्र हमने कल किया था । वह थी रोजगार की समस्या । कल यो बेरोजगार किसानों तक हम सीमित थे लेकिन अब सबसे बड़ी बोरोजगरी मजदूर वर्ग में होना लाजमी है । ऐसे दिहाड़ी मजदूर भी भारत में है, जिनके पास न ही बैंक खाते हैं और न ही गड़ा हुआ धन, जिसके बल पर वह अपना जीवनयापन कर सके । वह बेचारे रोज की रोटी का जुगाड़ नियमित रूप में करते हैं और बचे हुए अतिरिक्त धन का सदुपयोग मनरंजन के लिए घीसू-माधव के किरदार में करते हैं । उनके लिए न ही जीवन किसी परदे से घिरा है और न ही संगम किसे त्रिमूर्ति को समर्पित हैं ।

अतः वर्तमान वैश्विक आपदा से निपटने में दूसरी सबसे बड़ी समस्या-जनता की क्षुधा-पूर्ति ही है । इसमें प्रथम निःसंदेह #घरकोस्वर्ग समझना और इस पर अमल करना है । हाल-फिलहाल मीडिया के दोनों माध्यमों से डर लगने लगा है । पहले मुद्रित माध्यम(कुछ समाचार पत्र) प्रभावित भी कर जाते थे लेकिन अब तो दोनों माध्यमों के प्रति उदासीन होना स्वाभाविक है । ऐसी विषम परिस्थिति में आज अचानक चलित विद्युत संचालित माध्यम पर नजर गयी तो उसे देख मन अधिक व्यथित हो गया । समाचार के चैनलों में कुछ रिक्शा चालक चंडीगढ़ और कुछ तो दिल्ली से मोतिहारी जाने को विवश हैं । इससे भी गम्भीर स्थिति उनकी है जो फुटपाथ पर अपना जीवनयापन करने को अभिशप्त हैं । ऐसे लोग पैदल ही अपने घर चल दिये ।

हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि-उपर्युक्त मजबूरी व्यक्तिगत न होकर सार्वजनिक है । यह देशहित में भारत के प्रत्येक नागरिकों का कर्तव्य है कि-ऐसे लोगों से दूर न भागें अपितु उनकी सहायता में नियत सामाजिक दूरी सहित आगे आये । क्योंकि यदि भारत के लोग एक होकर इस आपदा का सामना नहीं करेंगे तो समय बहुत तीव्र गति से भागेगा । इससे बड़ा आश्चर्य नहीं हो सकता है । इस समय तमाम नामी-गिरामी एवं नामांकित एन जी ओ कमोबेश काले विवर में चले गये प्रतीत हो रहे हैं । कल तक बड़ी -बड़ी डींगें हाँकने वाले विलुप्त के कगार पर हैं या इस महामारी से निपटने की रणनीति बनाने में अक्षम हैं । प्रसंगतः एक वर्ग यदि स्वास्थ्य का प्रशिक्षण लिए वार्ड ब्वाय और स्टाफ नर्स (जो कहीं सरकारी सेवा नहीं दे रहे हैं) को एकजुट करके कुछ प्रयास करते तो इस संकट की घड़ी में मजबूत कड़ी बन सकती है ।

बहरहाल एकांतवास को सन्यास की तरह आत्मसात करने में ही स्वयं के साथ सम्पूर्ण देश की भलाई है । हमें जन-जन को जागरूक करना है । वह गाँव हो, मलिन बस्तियाँ हो या राजमहल हर जगह जागरूकता अभियान चलाना है । आज भारत का लगभग हरेक नागरिक सक्रिय  संचार के साथ तीव्र गति से जीवन की दौड़ लगा रहा है । ऐसे संचारों (विशेषतः मोबाईल एवं सोशल मीडिया के द्वारा) का प्रयोग भी जागरूक करके एकान्तवासी योगी जैसे जीवन व्यतीत करने के प्रति मार्गदर्शक की भूमिका में अपनी पहचान कायम करते हुए देश सेवा में महती भूमिका निभा सकते हैं ।

अंततः आपका परिवार आपके साथ है । आप स्वयं उन्हें सुरक्षित रख सकते हैं । एक दूसरे को रोकें, टोकें और जरूरत पड़ने पर भड़के लेकिन घर को ही स्वर्ग मानकर घर में ही रहें । यह घर जहाँ भी हो, जिस रूप में भी रहे, वह आपका है और उसमें स्वर्णिम बिहान आपके परिवार का होगा । तभी देश इस आपदा से मुक्त होगा ।

स्वच्छ रहें, स्वस्थ रहें ।
व्यस्त रहें, व्यस्त रखें ।।

©डॉ. मनजीत सिंह

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