शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मैत्री बोल बड़े अनमोल


कोरोना में भूलकर भी दुश्मनी न निकालें क्योंकि इसमें सर्वाधिक प्रभावी औषधि "उत्साह" ही है । लेकिन कुछ लोग इतने निम्न स्तर तक गिर जाते हैं कि उनकी चर्चा करना मुनासिब नहीं है । आचार्य शुक्ल ने इसका वर्णन अपने उत्साह निबंध में बड़े ही सधे शब्दों में किया है ।

वह लिखते हैं कि-"मनुष्य शारीरिक कष्ट से ही पीछे हटने वाला प्राणी नहीं है। मानसिक क्लेश की संभावना से भी बहुत से कर्मों की ओर प्रवृत्त होने का साहस उसे नहीं होता। जिन बातों से समाज के बीच उपहास, निंदा, अपमान इत्यादि का भय रहता है, उन्हें अच्छी और कल्याणकारी समझते हुए भी बहुत से लोग उनसे दूर रहते हैं।"

हमें भी इस कठिन दौर में मानसिक विचलन से आप्लावित इन तत्वों से कोसों दूर रहना चाहिए और केवल उत्साह के साथ नयी ऊर्जा का संचार करना चाहिए । आज यह सब क्योंकि आज मैंने इस दौर के सबसे भयानक संबंधों के बारे में सुना तो शरीर की नशों में धड़कने बढ़ गयी । आखिर एक मित्र इस हद तक जा सकता है कि उसके पास उत्साह तो दूर शब्द के
एक बोल भी अनमोल हो गये ।

इस धरती पर जन्म लेने के बाद हर व्यक्ति किसी न किसी आपदा का शिकार होता है । आज वह हैं कल कोई और हो सकता है । परन्तु क्रूर मानवता की बलि देकर जो लोग उत्साह नहीं बढ़ा सकते हैं तो कम से कम ऐसे शब्दों से किसी भी पीड़ित को घायल न करें, जिससे संवेदनाएँ आहत हों ।

शुक्ल जी इसी निबंध में इसे कर्म-फल से जोड़कर लिखते हैं कि-उत्साह वास्तव में कर्म और फल की मिली जुली अनुभूति है जिसकी प्रेरणा से तत्परता आती है। यदि फल दूर ही पर दिखाई पड़े, उसकी भावना के साथ ही उसका लेशमात्र भी कर्म या प्रयत्न के साथ लगाव न मालूम हो तो हमारे हाथ पाँव कभी न उठें और उस फल के साथ हमारा संयोग ही न हो। इससे कर्म ऋंखला की पहली कड़ी पकड़ते ही फल के आनंद की भी कुछ अनुभूति होने लगती है। 

वर्तमान समय में इसी कड़ी में स्वयं को गूँथने की जरूरत है । यह औषधि वर्तमान समय में उपलब्ध समस्त अविष्कारों में महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट है ।👏🏻

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