विज्ञान दिवस विशेष
आज सी.वी रमन जी का दिन हैं, क्योंकि हम विज्ञान दिवस मनाते आ रहे हैं और भविष्य में भी यह परंपरा जारी रहेगी । आज ही के दिन रमन-प्रभाव प्रकाश में आया | जब हम आधुनिक सन्दर्भों में विज्ञान के बारे में सोचते हैं तो अनायास ही तथागत तुलसी स्मरण आते है | लेकिन जब छोटे-छोटे बच्चों को देखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि-वह विज्ञान के बोझ तले कुचले जा रहें | यहाँ व्यहार की बजाय सिद्धांत पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है | कहने के लिए सरकार शिक्षा को बाल केन्द्रित करने के तमाम प्रयास करती आ रही है लेकिन यथार्थ कुछ और है |
अक्सर यह देखा जाता है कि भौतिक विज्ञान का अध्यापक/प्राध्यापक कक्षा में प्रवेश करता है तो उसी पारंपरिक परिपाटी पर व्याख्यान देकर संतोष कर लेता है | यह सकारात्मक है कि कम्पूटर एवं हाल की वैश्विक महामारी ने कुछ हद तक सिद्धांत को व्यवहार में बदलने में अहम् भूमिका निभाया है परन्तु प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में अंतरजाल ही इसका दुश्मन भी है और दोस्त भी | दुश्मन इस रूप में कि यहाँ कभी भी कहीं भी, कोई भी प्रोजेक्ट मिल जाता है, जिसे तथाकथित वैज्ञानिक श्रेणी के ज्ञान को सामान्यीकृत करके प्रचारित करने में सहयोग मिल जाता है | इससे न केवल ज्ञान की गरिमा को आघात पहुँचता है अपितु स्वयं का कौशल भी दिन प्रतिदिन निम्न से निम्नतम होता चला जाता है ।
परन्तु मैत्री यह इस अर्थ में है कि-यह हमें नयी जानकारियाँ प्रदान कराता है | एक बात यहाँ रखना जरूरी है कि-आज जिस ज्ञान को नवीनीकृत करके शिक्षक कक्षा में जाते हैं, उससे कहीं आगे वे छात्र उसी माध्यम से ज्ञान प्राप्त किये रहते हैं | इस सन्दर्भ में यह विमर्श का विषय हो सकता है शायद शोध का विषय भी बन सकता है |
आखिर क्या कारण है कि-रमन सरीखे मेधावी छात्र दिखाई नहें देते ? मात्र 19 वर्ष में जिस प्रकार सिविल सेवा में आना, शोध के लिए रूतबा का त्याग और कोलकाता में प्रोफेसरी करना अपने आप में विशिष्ट है | आज तो समय बदला, समाज बदला, मानवता बदली, राजनीति बदली लेकिन दूसरा रमन क्यों नहीं पैदा हुआ ?
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