बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

मीडिया के अनसुलझे रहस्य : कल, आज और कल


आज से लगभग सत्ताईस वर्ष पूर्व एक नवोदित-उभरती हुई बेहतरीन कलाकार की मृत्यु छत की बालकनी से गिरने से हो गयी थी । उस अभिनेत्री का नाम था-दिव्या भारती । उस समय मीडिया में यह खबर उड़ने लगी कि-समकालीन अभिनेत्रियों ने दिव्या भारती की कामयाबी से ईर्ष्या करने लगी थी और उनमें से एक बहुचर्चित अभिनेत्री का नाम भी बड़े जोर-शोर से उछला था । लेकिन गनीमत यही थी कि उस समय न तो टी आर पी में कोई खेल खेला जाता था और न ही मीडिया में खलनायकी हो रही थी । 


आज अचानक इस घटना से मीडिया के वर्तमान अंडरवर्ल्ड को जोड़कर देखने से टेलीविजन रेटिंग प्वॉइंट के खेलों का यथार्थ परत दर परत खुलता नजर आ रहा है । इस सन्दर्भ में कुछेक प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाते हैं-


1. भारत में मीडिया का कौन सा कोना/रूप है, जो इस घिनौने व्यापार से लाभ नहीं ले रहा है ? 

2. क्या केवल दो-तीन न्यूज चैनल ही टी आर पी की कालाबाजारी में अपना अस्तित्व बचाने या बुझाने का प्रयास कर रहे हैं ?

यदि पहले प्रश्न की पड़ताल करते हैं तो दिव्या भारती वाली घटना और उस समय की मीडिया एवं बालीवुड के अनेक रूप नजर आना लाजमी है । जैसे उस समय उस अभिनेत्री की मृत्यु रहस्य के घेरे में है ठीक उसी प्रकार कुछेक चैनलों की मिलीभगत से हम इनकार कैसे कर सकते हैं ? आखिर ! हम एकतरफा निर्णय कैसे कर सकते हैं ? यदि हम किसी घटना के ऋण पक्ष को अनसुना कर देंगे तो उस घटना की वस्तुनिष्ठता पर सवाल उठना लाजमी है । 


आज शायद ही कोई चैनल दूध का धुला हो । पहले तो ऐसे कहा जाता था कि-अमुक मनोरंजन चैनल को सपरिवार नहीं देख सकते हैं क्योंकि उस धारावाहिक को देखते-देखते कब विज्ञापन के अश्लील दृश्य आपको रिमोट के बटन को दबाने को मजबूर करेंगे । इसका एहसास केवल घर के जिम्मेदार सदस्य को ही हो सकता है क्योंकि वह हमेशा एलर्ट मोड पर टीवी देखते रहते थे । 


इस प्रकार विज्ञापन और प्रचार की लिप्सा ने मीडिया के परिदृश्य को पूर्णरूपेण परिवर्तित कर दिया है । यह स्थिति कमोबेश हरेक चैनलों में देखने को मिल जायेगी । आप स्वयं ही सोच लीजिए कि-अपने समाचार के संपादकों को मोटी रकम देने वाले चैनलों को मुफ्त में जनता को समाचार परोसने का क्या लाभ ? यदि उन्हें हानि होती तो कुछ न कुछ धनराशि जरूर वसूलते । लेकिन कुछ को छोड़ सभी चैनल मुफ्त है । बहरहाल मूल मुद्दा यही है कि-मीडिया के किस स्वरूप को आत्मसात किया जाय क्योंकि यहाँ विचार के नाम पर तथ्य भी गड्डमड्ड हो चुके है । ये विचार कोरोना वायरस से भी अधिक खतरनाक है । कोरोना की वैक्सीन खोज ली जायेगी और सम्पूर्ण भारतवासी को इसके टीके लगा दिये जायँगे । परन्तु मीडिया के परिवर्तित विचार हल्के होकर बवंडर बाँधते है, जिसका खामियाजा मूकदर्शकों को ही भोगना पड़ता है ।

©डॉ. मनजीत सिंह

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