निन्यानबे का चक्कर
घर में भूसी-भांग नहीं
लगा निन्याबे का फेर
मालिक चले वकील संग
बेचने फिर से वह खेत ....!
पत्नी थी जीवन की संगिनी
बन बैठी वह भी स्टेपनी
बेचारी समय की मारी वह
नहीं रहा उसमें वह नेह |
हाजिर हुए राज दरबार में
नहीं रही उनको अब सुध
दारू- मुर्गा -चना चबेना
खाकर जोश हुआ अब दुगुना |
राजनीति ने मारी बाजी
कूटनीति के हुए शिकार
भरे सावन में बरसा मेघ
नहीं बचा अब उनका खेत |
बुद्धू बन घर वापस आये
खेत गवाएँ वापस आये
बेटा-बेटी लिपटे गले से
रो-धोकर संताप मिटाए |
.....डा.मनजीत सिंह.......२७/०४/२०१३
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