महिला दिवस पर-बे मन
अ-सहाय भ्रूण ने कहा-
माँ..S.. मेरी रक्षा करो -
क्योंकि
जब मैं बड़ी होऊँगी
दर्द तेरी समझूँगी
ससुराल में रहकर भी
ममता की लाज रखूँगी |
याद करो जब तुम भी असहाय,
आधुनिकता से अनजान
परम्परा से ओतप्रोत रहकर
आयी थी बेजान |
यह ठीक है..........!
समय बदला, समाज बदला
वह सब कुछ बदला
जिस कारण हम है मजबूर
लेकिन
मेरी न सही
दूसरों को तो देखो
जो
संपत्ति के स्वामी होकर भी
अनाथ का स्वामी बन गुजार रहें,
अपनी दुनिया आप बना रहें |
बचपन में जिस पर लूटा दिया
तन-मन-धन अपना
वही आज बेगाना बनकर
तुम्हे इस रूप में छोड़ दिया |
झुर्रियाँ चेहरे की साफ़ कह रहीं हैं
पनही-धोती मैली होकर
धिक्कार रही है....!-
उस औलाद को जो स्वयं
शीत-ताप को भी नियंत्रित कर रहें |
इसी कारण
मैं तो कहती हूँ माँ-
भावी पीढ़ी को देख सतर्क होना ही उचित है |
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