सोमवार, 8 मार्च 2021

महिला दिवस पर-बे मन

 महिला दिवस पर-बे मन


अ-सहाय भ्रूण ने कहा-

माँ..S.. मेरी रक्षा करो -

क्योंकि

जब मैं बड़ी होऊँगी

दर्द तेरी समझूँगी 

ससुराल में रहकर भी 

ममता की  लाज रखूँगी |

याद करो जब तुम भी असहाय, 

आधुनिकता से अनजान 

परम्परा से ओतप्रोत रहकर 

आयी थी बेजान |

यह ठीक है..........!

समय बदला, समाज बदला 

वह सब कुछ बदला 

जिस कारण हम है मजबूर

लेकिन 

मेरी न सही 

दूसरों को तो देखो 

जो 

संपत्ति के स्वामी होकर भी 

अनाथ का स्वामी बन गुजार रहें, 

अपनी दुनिया आप बना रहें |

बचपन में जिस पर लूटा दिया 

तन-मन-धन अपना 

वही आज बेगाना बनकर 

तुम्हे इस रूप  में छोड़ दिया |

झुर्रियाँ चेहरे की साफ़ कह रहीं हैं 

पनही-धोती मैली होकर 

धिक्कार रही है....!-

उस औलाद को जो स्वयं 

शीत-ताप को भी नियंत्रित कर रहें |

इसी कारण 

मैं तो कहती हूँ माँ-

भावी पीढ़ी को देख सतर्क होना ही उचित है |


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...