रविवार, 30 जनवरी 2022

 खुश रहने की तमीज


व्यक्ति की गरिमा उसके व्यवहारों से निर्धारित होती है । क्योंकि व्यवहार ही उसे अच्छे विचारों को उद्भूत करने को विवश करता है । यह दो तरीकों से शरीर की कोशिकाओं में समाहित होता है । इसमें पहले स्थान पर निःसंदेह संस्कार की अतीव भूमिका होती है, जो विरासत-प्रदत्त होता है । इससे वह कम से कम ब्रह्मराक्षस बनने और होने की प्रक्रिया से बाहर होता है । दूसरे स्थान पर देश-काल और वातावरण का होना लाजमी है । यह व्यक्ति के वर्तमान व्यक्तित्व को न केवल विनिर्मित करता है अपितु मनोवैज्ञानिक प्रभावों को भी आत्मसात करता है ।

उपर्युक्त परिस्थितियाँ कमोबेश समस्त मानव जातियों में व्याप्त होती हैं । इसी के आधार पर कुछ लोग सभ्रम वर्गीय विभाजन को हवा देने का प्रयास भी करते है । यह विभाजन त्रिस्तरीय होता है-1. व्यक्तिगत 2. सामाजिक और 3. पारिवारिक । इनमें सबसे खतरनाक प्रथम है क्योंकि इसमें व्यक्ति स्वयं को सर्वस्व स्वीकार कर लेता है । उसके मन में प्रशासकीय गुणों की झूठी फिल्म चलने लगती है । इस फिल्म में न ही कोई रील होती है और न ही चाँदी के परत का प्रभाव् । जबकि यह उसके भीतर नये तरह के चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित होने में महती भूमिका निभाता है ।

ऐसे ही एक जीव-कथित तौर पर स्वयं द्वारा उपकृत महामानव से भिड़ंत हुई । यह भिड़ंत इतनी तगड़ी नहीं थी । परन्तु सरकारी कार्यक्रमों में खलल डालने के लिए काफी थी । आखिर व्यक्तिशः कुछ लोग घोषित नारायण की पदवी धारण करके पूरा पर्वत उठाने का दंभ भरते हैं । वह स्वयं को निम्न रूप में सिद्ध करते हैं--मैं हिटलर की पीढ़ी के अंतिम किरदार हूँ । मैं बहुत बड़ा समाज सुधारक हूँ । मैं नैतिक रूप में उच्च व्यक्तित्व का स्वामी हूँ । मेरा चरित्र उत्तम है । मैं पूरे देश का चक्रवर्ती सम्राट हूँ । यदि मैं फूँक दूँ तो धूल की क्या मजाल ।  उन्हें यह पता नहीं होता कि आखिर यह पर्वत तो पूर्णतः मिट्टी का है । 

बाबा नागार्जुन ने सटीक शब्दों से बड़ा आघात करते हैं--हिटलर के ये पुत्र-पौत्र जब तक निर्मूल न होंगे.....जाऊँगा । और उस अंतिम किरदार का अवसान हो जाता है । ऐसी विषम परिस्थितियों में एक विचार छनकर आया--आँख मूँदकर विश्वास करने से बेहतर है कान खोलकर बात सुनना और धैर्य को धारण करना । 

और अंत में यही निश्चित किया कि-खुश रहना जीवन के लिए एक त्याहौर की तरह होता है । इसके लिए न ही हमें सरकार को किसी प्रकार का कर जमा करना है और न ही बड़बोलेपन के बहाने ओछी और अश्लील भाषा वाले कथित जन से लोक युद्ध छेड़ना है ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. माली के लिए फूल भरा बाग बहुत है,
    भूखे के लिए भात तनिक साग बहुत है।
    धन-दौलत से मिलता सुख चैन किसे है,
    अद्भुत सुख का साधन स्नेह ताग बहुत है।


    ज्ञान से परिपूर्ण 👌👌👌👌

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  2. माली के लिए फूल भरा बाग बहुत है,
    भूखे के लिए भात तनिक साग बहुत है।
    धन-दौलत से मिलता सुख चैन किसे है,
    अद्भुत सुख का साधन स्नेह ताग बहुत है।


    ज्ञान से परिपूर्ण 👌👌👌👌

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