गजल
1
दिल के मंदिर में गुलाब की सुगंध आती है
हर नाचीज को भी दुआ-सलाम करती है
आते हैं चढावे हर रोज धूप बत्ती के संग
पेट नहीं भरता औ भूख व्याकुल करती है ||
.....डा.मनजीत सिंह......१३/०५/१३
2
काश मेरे दर्द की भी कोई दवा होती, दूजा दुःख घूँट पीकर मस्त होता |
3
घरिनी घर को स्वर्ग बनाती, तभी तो वह इठलाती है ।
कभी-कभी चंडी बन जाती, तब तो बड़ा सताती है।।
7.6.13
डॉ. मनजीत सिंह
4
मन के मंदिर में प्रेम का दिया जलता है
दिन-रात कल्पना का प्रसाद चढ़ता है
समय-समय पर दिल का घंटा बजता है
यही नियमित क्रिया सुखद फल देता है।
9.9.13
डॉ. मनजीत सिंह
5
जब भीगी पलकों से हम कोई नाम लेते है,
भूल जाता दुनिया औ उस पर जान देते हैं।
9.6.13
डॉ. मनजीत सिंह
6
उम्र के इस दहलीज पर आगे बदने को सोचता हूँ |
नींद भी नहीं आती और जमाना सोने नहीं देता ||
डा. मनजीत सिंह
11.06.13
7
शिखर की ओर देखकर मुझे सुकून नहीं मिलता,
उस मंजिल पर पहुँचकर ही मन संतुष्ट होता है।
11.6.13
डॉ. मनजीत सिंह
8
कभी-कभी तो सोचता हूँ.......काश् मैं भी अमीर होता
रोटी-कपड़ा-मकान से ऊपर...चाँद-तारों के करीब होता।
12.6.13
डॉ. मनजीत सिंह